Tuesday, April 14, 2020

बकवास करते है आप, जाति कहाँ है? / नामदेव ढसाल

थू करने के लिए नही है मेरी जबान पर थूक
बकवास करते है आप, जाति कहाँ है ?

बीच बाज़ार में घसीटते हुए ले जाकर
लटका दिया उलटा
वहीं जहाँ है फव्वारे और ढेर सारे फूल खिलने की प्रतीक्षा में
ठीक उसी सड़क पर जो हवाई अड्डे से औद्योगिक केन्द्र को खिंचती है
जिसका दूसरा हाथ बिग बाज़ार के माल के नीचे रखा हुआ है

वहीं पर
उसकी गरदन को धड़ से अलग करने के लिए
तलवार से काटा गया
ख़ून निकला और वही जिसे कली कहकर हँसते हो
उसके भीतर चला गया
किसी को पता ही नहीं चला
 
काले शीशे से लाल रंग तो दिखता नहीं लाल
और हीरो होण्डा बजाज से निगाह आगे की तरफ़ होती है
उसकी नज़र में भी घुस न सका ख़ून
फुटपाथ को तो घेरकर शर्मा स्वीट सेण्टर ने कंजूमर के हवाले कर दिया

राहगीर नहीं है कोई उसकी राह खा गया वह
उसी वक्त सुपारी के कारख़ाने में जल रहा है कुछ
भट्टी के नीचे
सुपारी को सेंकने के लिए और फैल रहा है उसका धुआँ
जो जाता है सीधे आँखों में

मसलते है और आगे बढ़ जाते है कि उनके पास नहीं है वक़्त
ग़ाली देने के लिए भी
तभी किसी आवाज़ से कोई समाचार आता है
दिमाग के भीतर भट्टी में
पहाड़ियों में गड्डों से जाता नहीं हर कोई डही
जहाँ फरमान हुआ है
तसदीक करनी है उसी जाति के तो हो लेकिन ये काम करते हो ?

विकास बहुत हुआ
बहुत कर ली कोटे वालों ने तरक्की हक़ मारकर .
गाँव, पटवारी, पंचायत, स्कूल के प्रमाण के बाद भी ज़रूरी है
सन्तुष्टि के लिए फ़ोटो ।
  
भरोसा ही नहीं होता मनुष्य को देखकर
कागज़ पंचनामा रिकार्ड शपथपत्र
सब हो सकते है फ़र्ज़ी
बनाया जा सकता है आदमी को भी फ़र्ज़ी
जाति प्रमाणपत्र तो सदियों से बनाए जाते रहे है

सदियों से करते आ रहे है यही काम-धन्धा हमारे पुरखे
तब शिवाजी की जाति के लिए बनारस से बनवाया गया था रिकार्ड
अब कलयुग में ऊँची जात का नहीं चाहिए प्रमाण
वो तो रोटी-बेटी से कर लेते है
बार-बार हज़ार बार सरेआम कहते है
कभी अपने ग़रीब होने के पुछल्ले को जोड़कर तो कभी मूँछ पर ताव देकर
कहते हो ही... ही... करते हुए — बनिया आदमी हूँ

तय कर देते हो और सामने वाला भूल गया हो तो याद कर ले अपनी जाति
कोटा, आरक्षण-रिजर्वेशन, मेरिट, प्रतिभा पलायन, देश-दुनिया
राजनीति, वोट-बैंक, गन्दगी, कचरा, फ़िल्म हिरोइन, एसएमएस, एमएमएस, वाट्स अप, नीली फिलिम गाने ....
बाय करते हो
कि भोत काम बाक़ी है
ये ज़िन्दगी भी कोई ज़िन्दगी है
ये देश भी कोई देश है ...
उस बच्चे से जिसे भगवान का रूप बोलते हुए किसी को शर्म नहीं आती
कहते हो पाना हो स्कालरशिप तो ले आओं मरे हुए जानवर के साथ
अपना फ़ोटो...

ढाई सौ किलोमीटर दूर जब सुनता हूँ
तो अपने को किसी आदिम गुफ़ा में पाता हूँ
सन्न हूँ
कि कितने कुत्सित विचार हैं तुम्हारे
कि मानसिकता की सड़न के बाद भी तुम अभी भी हो
उसी गटर के कीड़े जो रेंगता है गन्दगी छोड़ता है और सड़ जाता है
थू करने के लिए नही है मेरी जबान पर थूक
 
बस बचे है मेरे पास शब्द जिन्हें वापरता हूँ
कि चूल्हा जलाने के काम आ जाएँ
कि कक्षा नौ के पाठ की तरह अपने बेटे को पढ़ा सकूँ
जब कोई माँगे तुमसे इस तरह का प्रमाण
तो मेरी तरह ख़ुद का क़त्ल मत होने देना

मेरे बेटे उससे कहना अंकल जी मेरे पास है एट्रोसिटी का काग़ज़
घर में है संविधान...
मूल मराठी भाषा से अनुवाद : कैलाश वानखेड़े

No comments:

Post a Comment